आचार्य श्रीराम शर्मा >> दर्शन तो करें पर इस तरह दर्शन तो करें पर इस तरहश्रीराम शर्मा आचार्य
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देव अनुग्रह की उपयुक्त पात्रता प्राप्त किए बिना कोई भी व्यक्ति केवल देवदर्शन अथवा दक्षिणा-प्रदक्षिणा द्वारा मनोरथ को सिद्ध नहीं कर सकता
सत्पुरुष और उनके दर्शन
व्यक्तियों के दर्शन पर भी यही बात लागू होती है। किन्हीं संत, महात्मा, महापुरुष, ज्ञानी का शरीर दर्शन तभी उपयोगी हो सकता है जब उन्हें देखने के बाद उनको सुनने, समझने, विचारने एवं अपनाने का भी प्रयत्न किया जाए। सत्पुरुष के शरीर दर्शन से जो प्रेरणा मिले, उसे एक कदम आगे बढ़ाया जाना चाहिए। उसकी महत्ता किन कारणों, किन गुणों के कारण है, उसे समझना चाहिए। एक हाड़-माँस के व्यक्ति को अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ सम्मानित जिन सद्गुणों ने, जिन आदर्शों ने बनाया, उन्हें अधिक श्रद्धा, अधिक भावना, अधिक तन्मयता से देखना चाहिए। इतना ही नहीं, इन श्रेष्ठताओं को अपने भीतर भी ओत-प्रोत होने का एक भावपूर्ण कल्पना चित्र हृदयगम करना चाहिए। शरीर दर्शन एवं गुण चिंतन से जो प्रेरणा प्राप्त हो, उसे अपने को उसी दिशा में चलने का संबल बनाना चाहिए। यदि इतना काम किया जा सका तो समझना चाहिए कि दर्शन सार्थक हो गया। जिन्होंने इस प्रकार की मानसिक स्थिति में सत्पुरुषों के दर्शन किए हैं, वे धन्य हो गए। उन्हें वह लाभ मिल गया जो दर्शन से मिलना चाहिए किंतु जिन्होंने आँख के पलक मात्र खोलकर कलेवर देखा, उन्हें कुछ भी न मिल सका, वे खाली हाथ ही बने रहे।
गाँधी जी का भाव दर्शन करने वाले नेहरू, पटेल, विनोबा, राजेंद्र प्रसाद जैसे व्यक्तित्व कृतकृत्य हो गए। उन्होंने गाँधी दर्शन का प्रत्यक्ष पुण्यफल प्राप्त कर लिया, पर जो लोग केवल उनका शरीर भर देखते रहे, देखते ही नहीं उस शरीर की सेवा के लिए नाई, धोबी, ड्राइवर, रसोइया, चपरासी सरीखे काम भी वर्षों करते रहे, उनमें रत्तीभर भी कोई हेर-फेर न हुआ। उन्हें वेतन के रूप में कर्मचारी को मिलने वाले साधारण से अर्थ लाभ के अतिरिक्त और कोई उपहार प्राप्त न हुआ। विनोबा ने गाँधी जी के पैर दबाने, मालिश करने, हजामत बनाने जैसा निकटतम दर्शन भले ही न किया हो, पर उन्होंने गाँधी के तत्वज्ञान को बारीकी से देखा, सीखा और अपनाया। उन लोगों का पता भी नहीं जो गाँधी जी की नित्य शारीरिक सेवा तथा साज-सँभाल करते थे और उनके इर्द-गिर्द में ही दिन-रात बने रहते थे। यदि शरीर दर्शन से कुछ लाभ हुआ होता तो निश्चय ही गाँधी, पटेल, विनोबा आदि की अपेक्षा वे लोग ही अधिक उच्चकोटि के महापुरुष बन गए होते जो निरंतर उनके साथ-साथ या सामने ही रहते थे।
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