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आचार्य श्रीराम शर्मा >> दर्शन तो करें पर इस तरह

दर्शन तो करें पर इस तरह

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15478
आईएसबीएन :00000

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देव अनुग्रह की उपयुक्त पात्रता प्राप्त किए बिना कोई भी व्यक्ति केवल देवदर्शन अथवा दक्षिणा-प्रदक्षिणा द्वारा मनोरथ को सिद्ध नहीं कर सकता

मंडी के दर्शन से अर्थ-लाभ

 

किसी से सुना कि मंडी में कई व्यक्ति जाकर खरीद-फरोख्त का व्यापार करते हैं और धन कमाते हैं। मंडी में आने-जाने वाले, उस क्षेत्र के संपर्क में रहने वाले, नित्य-दर्शन करने वाले लोग धनी व्यापारी बन जाते हैं। इस चर्चा को सुनकर एक बेकारी दूर करने का इच्छुक व्यक्ति मंडी जाता है, वहाँ का रंग-ढंग देखता है, कइयों को बेचने में और कइयों को खरीदने की क्रिया करते हुए और लाभ कमाते हुए देखता है। उसकी श्रद्धा बढ़ती है कि बात ठीक है। यहाँ बेकारी दूर करने और कुछ उपार्जन करने के साधन मौजूद हैं। अब वह वहाँ वालों से पूछताछ करता है कि मेरी स्थिति के अनुसार यहाँ क्या काम करना संभव हो सकता है। जो सुझाव समझ में आया उसे अपनाता है। निरंतर परिश्रम करता है, भूलों को सुधारता है और क्रमश: व्यापार बढ़ता चलता है और वह धनी व्यापारी बन जाता है। दूसरे बड़े व्यापारियों की तरह कार-कोठी बना लेता है। जो पूछता है, उसी से मंडी की प्रशंसा करता है और कहता है कि यही सौभाग्य वृद्धि का वरदान है। जो इसके दर्शन करता है, अमीर बन जाता है। उसका कथन अक्षरश: सही और अनुभूत भी है।

दूसरा व्यक्ति मंडी के द्वारा धनी होने की चर्चा सुनता है, उसका माहात्म्य सुनकर लालायित हो उठता है। प्रातःकाल स्नान कर, चंदन धारण कर, हाथ में धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, अक्षत लेकर जा पहुँचता है। मंडी देवी की मनौती मनाता है, स्तुति करता, पूजा-उपहार समर्पित करता है, परिक्रमा लगाता है, साष्टांग प्रणाम करता है और घर चला आता है। घड़ी-घड़ी विकलतापूर्वक प्रतीक्षा करता है कि लक्ष्मी जी कब आवें, कब मोटर, कोठी खरीदी जाए? इस प्रकार की प्रतीक्षा करने वाले को बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उसने मंडी द्वारा लक्ष्मी प्राप्त होने की चर्चा मात्र सुनी है, पूरा तथ्य समझने की कोशिश नहीं की है। यदि उसने वस्तुस्थिति जानने का प्रयत्न किया होता तो प्रतीत होता कि मंडी का दर्शन तो एक शुभ आरंभ मात्र है, यहाँ से एक लंबी शृंखला आरंभ होती है, जिसके साथ कठोर श्रम, अविचल धैर्य, पर्याप्त समय, आवश्यक सूझबूझ, कठोर संघर्ष का ताना-बाना बुना हुआ है। उस लंबी मंजिल को जो साहसपूर्वक पार कर सकता है, केवल वही लक्ष्मी उपार्जन का अधिकारी बनता है। यदि यह तथ्य उसे विदित होता तो मंडी के दर्शन मात्र से लक्ष्मी प्राप्ति का वरदान पाने के लिए लालायित न बैठा रहता।

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