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आचार्य श्रीराम शर्मा >> दर्शन तो करें पर इस तरह

दर्शन तो करें पर इस तरह

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15478
आईएसबीएन :00000

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देव अनुग्रह की उपयुक्त पात्रता प्राप्त किए बिना कोई भी व्यक्ति केवल देवदर्शन अथवा दक्षिणा-प्रदक्षिणा द्वारा मनोरथ को सिद्ध नहीं कर सकता

अस्पताल की दर्शन झाँकी

 

अपना शरीर रुग्ण है, सुना है कि अमुक अस्पताल में इस रोग का ठीक इलाज होता है। कई रोगी अच्छे हुए हैं। श्रद्धा बढ़ी, वस्तुस्थिति जानने के लिए वहाँ गए। देखा अस्पताल में वस्तुत: बहुत अच्छी व्यवस्था है। रोगियों की सुविधा का पूरा ध्यान रखा जाता है, डॉक्टर सुयोग्य एवं सेवाभावी हैं। इस रोग के विशेषज्ञ हैं। बहुत रोगी अच्छे होते हैं। इस जानकारी से श्रद्धा बढ़ी। अब अधिक विवरण जानने की उत्कंठा हुई। क्या उपचार होता है, कितना समय लगता है, क्या शर्तें पूरी करनी होती हैं, कितना खरच पड़ता है? जिज्ञासाओं का समाधान अधिकारियों से पूछा गया, उन्होंने सब कुछ संतोषजनक ढंग से समझा दिया। पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद अस्पताल में भरती हुए। डॉक्टरों ने जितने दिन जो करने के लिए जिस तरह रहने, परहेज करने के लिए कहा था, उसी तरह रहे। उपचार चलता रहा, रोग घटता रहा, एक समय आया जब रोग से मुक्ति मिल गई। अस्पताल की प्रशंसा करते हुए घर आ गए। प्रथम दिन अस्पताल का दर्शन करने जिस कामना को लेकर गए थे, वह पूर्ण हो गई। जैसा बताया गया था, जैसा सुना था, अक्षरश: सच निकला।

एक दूसरा व्यक्ति उसी रोग का रोगी है। अस्पताल की प्रशंसा सुनता है, वहाँ जाता है, दर्शन करता है। इसके उपरांत परिक्रमा लगाता है, दंडवत करता है, फाटक पर पुष्पहार समर्पित करता है, दीपक जलाता है, अस्पताल की स्तुति बखानता है और घर चला आता है। सोचता है कि उसका दर्शन-पूजन रोग-मुक्ति की अभीष्ट मनोकामना पूर्ण कर देगा। ऐसे व्यक्ति का उपहास ही किया जाएगा क्योंकि वह आदि और अंत की प्रक्रिया से ही परिचित है। अस्पताल जाने वाले रोगमुक्त होते हैं, केवल इतनी ही जानकारी उसे है। बेचारे को यह पता ही नहीं कि आदि और अंत के बीच में 'मध्य' भी एक तथ्य होता है। कामना और उसकी पूर्ति के बीच में एक लंबा व्यवधान भी रहता है जिसे लंबी मंजिल की तरह क्रमबद्ध रूप से पूरा करना होता है। इस मध्यवर्ती साधना क्रम की उपेक्षा करने से अभीष्ट उद्देश्य कैसे पूरा हो सकता है? इस कड़वी सचाई को बेचारा भावुक व्यक्ति समझ ही नहीं पा रहा है। अस्पताल के दर्शन करने से रोगमुक्ति की आशा लगाए बैठा है। भले ही उसकी श्रद्धा कितनी ही प्रबल क्यों न हो, चिकित्सा का कष्टसाध्य आयोजन किए बिना, अस्पताल द्वारा मिल सकने वाला लाभ किसी को कहीं मिल सकेगा?

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