आचार्य श्रीराम शर्मा >> दर्शन तो करें पर इस तरह दर्शन तो करें पर इस तरहश्रीराम शर्मा आचार्य
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देव अनुग्रह की उपयुक्त पात्रता प्राप्त किए बिना कोई भी व्यक्ति केवल देवदर्शन अथवा दक्षिणा-प्रदक्षिणा द्वारा मनोरथ को सिद्ध नहीं कर सकता
हमारी मूर्खतापूर्ण बुद्धिमानी
हम अपने ढंग के अनोखे बुद्धिमान हैं, जिन्होंने सस्ते से सस्ते मूल्य पर कीमती उपलब्धियाँ प्राप्त करने की तरकीबें खोज निकाली हैं। हमारी मान्यता है कि अमुक तीर्थ, देव-प्रतिमा या संत का दर्शन कर लेने मात्र से आत्मकल्याण का लक्ष्य अत्यंत सरलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है। विचारणीय यह है कि क्या हमारी यह मान्यता सही हो सकती है। विवेक का एक ही उत्तर हो सकता है-नहीं, कदापि नहीं। काशीवास करने से यदि मनुष्य स्वर्गगामी हुआ करते तो वहाँ रहने वाले दुष्ट दुराचारियों को भी सद्गति मिल जाती। कर्मफल जैसा कोई सिद्धांत ही शेष न रहता, तब कोई सत्कर्म करने की आवश्यकता भी न समझता, तब ईश्वरीय न्याय एवं व्यवस्था जैसी कोई वस्तु भी इस संसार में न होती। तब पक्षपात की ही आपाधापी का बोलवाला रहता।
काशीपति से जिनकी पहचान हो गई, वे उनके गाँव में रहने के कारण वही लाभ उठाते जो भ्रष्टाचारी मिनिस्टरों से उनके स्वजन संबंधी या निकटवर्ती लोग उठाया करते हैं। जब ईश्वर भी वैसा ही करता है, तब मनुष्यों को पक्षपात करने पर दोष कैसे दिया जा सकेगा? जब दर्शन करने मात्र से देवता इतने प्रसन्न हो जाते हैं कि जीवन-निर्माण की साधना के लंबे मार्ग पर चलने वालों से भी अधिक लाभ बात की बात में दे देते हैं, तब तो उन लोगों की दृष्टि में दर्शन से बड़ी बात और हो ही क्या सकती है?
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