आचार्य श्रीराम शर्मा >> बिना मोल आफत दुर्व्यसन बिना मोल आफत दुर्व्यसनश्रीराम शर्मा आचार्य
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दुर्व्यसनों की समस्या
भाँग, गाँजा और चरस
भाँग और गाँजा भारत के ग्रामों में फैले हुए महारोग हैं। जो निरन्तर भयंकर विनाश कर रहे हैं। दुर्भाग्य का विषय है कि हमारे अपढ़, पिछड़े, साधु, वैरागी, भिखारी, पण्डे, पुरोहित लोग भाँग के विशेष शौकीन होते हैं। भगवान् शंकर की आड़ लेकर ये लोग निरन्तर भाँग, गाँजे और चरस का प्रयोग करते हैं। ये हमारे लिए कलंक की बात है।
स्मरण रखिए, भाँग, गाँजा, चरस इत्यादि विषैले पदार्थ हैं। इनमें प्रवृत्त होने से मानव की वृत्तियाँ पापमय हो जाती हैं, मन उत्तेजना एवं विकारों से परिपूर्ण हो जाता है।
गाँजा पीने वालों के दिमाग बहुत जल्दी बिगड़ जाते हैं। भाँग पीने वालों के चित्त की स्थिरता जाती रहती है और उचित-अनुचित का विवेक नहीं रहता। भंगेड़ी व्यक्ति सनकी होता है। उसके मन में जैसे ही एक बात उठती है, वह वैसे ही उसे कर बैठता है। ये व्यर्थ के व्यय मनुष्य को पनपने नहीं देते। गरीब मूर्खा की अधिकतर आय इन्हीं अनावश्यक मादक वस्तुओं में नष्ट हुआ करती है। ऐसा व्यक्ति व्यापार, उद्यम, कला-कौशल या किसी उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य करने के योग्य नहीं रह जाता।
सुश्रुत ने इन्हें कफ और खाँसीवर्धक बताया है। भाँग का पौधा विषैला है, जिससे भाँग, गाँजा, चरस तीनों नशीली चीजें तैयार होती हैं।
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