आचार्य श्रीराम शर्मा >> बिना मोल आफत दुर्व्यसन बिना मोल आफत दुर्व्यसनश्रीराम शर्मा आचार्य
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दुर्व्यसनों की समस्या
चाय एवं काफी
चाय एवं काफी सभ्य संसार में पनपने वाले मादक पदार्थ हैं। सभ्य जगत् ने और नशीली चीजों की तरह इन्हें भी अपना लिया है। वास्तव में ये दोनों जीवनी शक्ति का ह्रास करते हैं। इनके प्रयोग से शरीर से निकलने वाले कारबोलिक ऐसिड का परिमाण बढ़ जाता है।
चाय से सर दर्द बना रहता है। लोगों में यह भ्रान्ति मूलक धारणा बैठ गई है कि चाय से भोजन हजम हो जाता है। वास्तव में इससे उलटे पाचन क्रिया में व्यवधान उपस्थित हो जाता है। दिल की धड़कन की शिकायत बढ़ जाती है और अंग भारी रहते हैं। दाँतों के रोग में वृद्धि का एक कारण गर्म-गर्म चाय का व्यवहार ही है।
शारीरिक हानि के विचार से शराब और चाय एक ही प्रकार के हैं। अंतर केवल मंहगी और सस्ती का है। शराब मदहोश बनाकर अल्पकाल के लिए दु:ख हरती है, किन्तु चाय उत्तेजना देती और नींद हरती है। अमूल्य जीवन तथा शरीर के स्वास्थ्य को नष्ट करने में यह शराब से कम नहीं है, क्योंकि यह उससे सस्ती है और इसका प्रचार स्थान-स्थान पर है। क्षुधा नष्ट हो जाती है तथा चाय के अतिरिक्त और किसी प्रकार की इच्छा नहीं रह जाती। हृदय की गति निर्बल पड़ जाती है। इसके बिना मन खिन्न, चिड़चिड़ा और मस्तिष्क कार्य रहित सा रहता है। बदहजमी, भूख की कमी और अपच में चाय बड़ी सहायक होती है।
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