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आचार्य श्रीराम शर्मा >> बिना मोल आफत दुर्व्यसन

बिना मोल आफत दुर्व्यसन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15476
आईएसबीएन :00000

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दुर्व्यसनों की समस्या

जेवरों का भौंड़ा फैशन


स्वास्थ्य की दृष्टि से जेवर केवल हानिकारक ही सिद्ध होते हैं। वे शरीर के जिस भी अंग पर धारण किये जायेंगे, उसकी स्वच्छता में गड़बड़ी उत्पन्न करेंगे। वहाँ के रोमकूप रुकेंगे, पसीना ठीक तरह न निकलेगा, चमड़ी कड़ी पड़ेगी और बीमारियों की जड़ जमने का आधार बनेगा। नाक-कान जैसे कोमल मर्म स्थलों को छेदकर उनमें जेवर ठूसना, तो प्रकृति प्रदत्त इन अंगों की शोभा-सुषमा को नष्ट कर डालना ही है। नाक में पहने जाने वाले जेवर मैल जमा करते हैं। नाक से निकलने वाला पानी उनके भीतर जमने और सूखने लगता है जिसकी दुर्गन्ध निरन्तर साँस के साथ मस्तिष्क में जाती रहती है।

नाक-कान में छेदकर जेवर लटकाना किसी जमाने में सौन्दर्य साधन माना जाता रहा होगा, पर इस बीसवीं शताब्दी में कोई सभ्य व्यक्ति इस कुरीतिपूर्ण भौंड़ेपन का समर्थन नहीं कर सकता है। अमीरी का प्रदर्शन सो भी जेवरों के रूप में-अब शालीनता का चिह्न नहीं रह गया है। गृह कलह के आधार जेवर हैं। कम-बढ़ जेवर मिलने के कारण सद्गृहस्थ में भी ईर्ष्या द्वेष की भावना भड़कती है। शौकीन स्त्रियाँ अपने पतियों को आवश्यक काम रोककर भी जेवर बनवाने का आग्रह करती है, फलस्वरूप मनोमालिन्य बढ़ते हैं और अर्थ संतुलन बिगड़ते हैं। चोर-डाकुओं की घात लगती है सो अलग।

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