आचार्य श्रीराम शर्मा >> बिना मोल आफत दुर्व्यसन बिना मोल आफत दुर्व्यसनश्रीराम शर्मा आचार्य
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दुर्व्यसनों की समस्या
अश्लील गाने
जहाँ बालकों को रामायण, गीता, तुलसी, सूर, कबीर और नानक के सुरुचिपूर्ण भजन याद होने चाहिए, वहाँ हमें यह देखकर नतमस्तक होना पड़ जाना पड़ता है कि अबोध बालक फरमाइशी रिकार्डों के गंदे अभील गाने स्वच्छन्दता पूर्वक गाते फिरते हैं। न कोई उन्हें रोकता है, न उन्हें मना करता है। ज्यों-ज्यों यौवन की उत्ताल तरंगें उनके हृदय में उठती हैं, इन गीतों तथा फिल्मों के गंदे स्थलों की कुत्सित कल्पनाएँ उन्हें अनावश्यक रूप से उत्तेजित कर देती है। वे व्यभिचार की ओर प्रवृत्त होते हैं। समाज में व्यभिचार फैलाते हैं। बचपन के गंदे दूषित संस्कार हमारे राष्ट्र को कामुक और चरित्रहीन बना देंगे।
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