आचार्य श्रीराम शर्मा >> बिना मोल आफत दुर्व्यसन बिना मोल आफत दुर्व्यसनश्रीराम शर्मा आचार्य
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दुर्व्यसनों की समस्या
सिनेमा
सभ्यता के आवरण में जिस मनोरंजन ने सबसे अधिक कामुकता, अनैतिकता, व्यभिचार की अभिवृद्धि की है, वह है सिनेमा तथा हमारे गंदे विकारों को उत्तेजित करने वाली फिल्म, उनकी अर्द्धनग्न तस्वीरें और गंदे गाने।
सिनेमा से लोगों ने चोरी की नई-नई कलाएँ सीखीं, डाके डालने सीखे, शराब पीना सीखा, निर्लज्जता सीखी और भीषण व्यभिचार सीखा। सिनेमा के कारण हमारे युवक-युवतियों में किस प्रकार स्वेच्छाचार बढ़ रहा है। पता नहीं लाखों-करोड़ों कितने तरुण-तरुणियों पर इसका जहरीला असर हुआ है, फिर भी हम इसे मनोरंजन मानते हैं ?
सिनेमा ने समाज में खुले आम अशीलता, गंदगी, कुचेष्टाओं, व्यभिचार, घृणित यौन संबंध, शराबखोरी, फैशन परस्ती, कुविचारों की वृद्धि की है।
यदि हमारे युवक-युवतियाँ अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों के पहनावे, श्रृंगार, मेकअप, फैशन, पैण्ट, बुश्शर्ट, साड़ियों का अंधानुकरण करते रहे, तो असंयमित वासना के द्वार खुले रहेंगे। गंदे फिल्म निरन्तर हमारे युवकों को मानसिक व्यभिचार की ओर खींच रहे हैं। उनका मन निरन्तर अभिनेत्रियों के रूप, सौन्दर्य, फैशन और नाज-नखरों में भंवरे की तरह अटका रहता है। अश्लीलता के इस प्रचार को रोका जाना चाहिए, अवश्य रोका जाना चाहिए।
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