| नई पुस्तकें >> रौशनी महकती है रौशनी महकती हैसत्य प्रकाश शर्मा
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‘‘आज से जान आपको लिख दी, ये मेरा दिल है पेशगी रखिये’’ शायर के दिल से निकली गजलों का नायाब संग्रह
 
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मंजिल का निशां मील का पत्थर न मिलेगा
 मंजिल का निशां मील का पत्थर न मिलेगा
 आराम रह-ए-इश्क़ में दम भर न मिलेगा
 
 आँखों को कोई ख़्वाब का मंज़र न मिलेगा
 जब नींद सताएगी तो बिस्तर न मिलेगा
 
 ये प्यार तुझे और कहीं पर न मिलेगा
 ‘तुझको तेरे घर जैसा कहीं घर न मिलेगा’
 
 अच्छा ये ज़माने का है दस्तूर समझ ले
 चाहेगा जिसे तू वही अक्सर न मिलेगा
 
 उनसे जो हुये दूर तो सोचा भी नहीं था
 अब चाँद हमें फिर कभी छत पर न मिलेगा
 
 है रौब तेरा आज भी ‘ग़ालिब’ तेरे पीछे
 सबको तो ‘असद’ ऐसा मुक़द्दर न मिलेगा
 
 आलिम न कभी छोड़ेगा इख़लाक का दामन
 जाहिल तो किसी से कभी हँसकर न मिलेगा
 
 मुमकिन है कि आईने से डर जाए कोई शख़्स
आईना किसी शख़्स से डरकर न मिलेगा
 
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