लोगों की राय
नई पुस्तकें >>
रौशनी महकती है
रौशनी महकती है
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
|
पुस्तक क्रमांक : 15468
|
आईएसबीएन :978-1-61301-551-3 |
|
0
5 पाठक हैं
|
‘‘आज से जान आपको लिख दी, ये मेरा दिल है पेशगी रखिये’’ शायर के दिल से निकली गजलों का नायाब संग्रह
37
मज़े की बात कि अपना बदन किसी का नहीं
मज़े की बात कि अपना बदन किसी का नहीं
सराये फ़ानी से जाने का मन किसी का नहीं
विरासतों में ये तरमीम हो गयी कैसे
चमन तो सबका है, दार-ओ-रसन किसी का नहीं
लुभाने आता है लम्हों की शक़्ल में वरना
हुआ ये वक़्त कभी फ़ितरतन किसी का नहीं
हलफ़ उठा के ये कहता हूँ दर्द मेरे हैं
नज़र न कोई लगाये, ये धन किसी का नहीं
तमाम यादों के पैकर हैं इर्द-गिर्द मेरे
मिरी पहुँच में मगर तन-बदन किसी का नहीं
बहुत से तर्ज़े-सुख़न हैं मगर ग़ज़ल जैसी
किनाअतों की ज़बाँ और सुख़न किसी का नहीं
0 0 0
...Prev | Next...
पुस्तक का नाम
रौशनी महकती है
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai