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रौशनी महकती है
रौशनी महकती है
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 15468
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आईएसबीएन :978-1-61301-551-3 |
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0
5 पाठक हैं
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‘‘आज से जान आपको लिख दी, ये मेरा दिल है पेशगी रखिये’’ शायर के दिल से निकली गजलों का नायाब संग्रह
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आज जी भर के खिलखिलाए हैं
आज जी भर के खिलखिलाए हैं
मुद्दतों बाद लफ़्ज़ आए हैं
मिल गई हैं ख़याल को आँखें
लफ़्ज़ जबसे नज़र में आए हैं
हम तो ख़ामोशियों के परबत से
लफ़्ज़ कुछ ही तराश पाए हैं
लफ़्ज़ बाक़ी रहेंगे महशर तक
इनके सर पर खुदा के साए हैं
ये सुख़न और ये मआनी सब
लफ़्ज़ की पालकी उठाए हैं
लफ़्ज़ की रौशनी में हम तुमसे
जान-पहचान करने आए हैं
लफ़्ज़ तनहाइयों में बजते हैं
जैसे घुंघरू पहन के आए हैं
सिर्फ़ ये लफ़्ज़ ही तो अपने हैं
और दुनिया में सब पराए हैं
घर में कुछ था तो बस अंधेरा था
नूर आया जो लफ़्ज़ आए हैं
लफ़्ज़ आकर हमारे दरवाज़े
हम पे एहसान करने आए हैं
लफ़्ज़ से पा के हौसले हमने
रंज के हौसले घटाए हैं
खुशक़दम लफ़्ज़ घर में आए तो
हमने घी के दिये जलाए हैं
लफ़्ज़ एहसास की ज़िया बन कर
दर्द की अंजुमन में आए हैं
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पुस्तक का नाम
रौशनी महकती है
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