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रौशनी महकती है
रौशनी महकती है
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 15468
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आईएसबीएन :978-1-61301-551-3 |
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5 पाठक हैं
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‘‘आज से जान आपको लिख दी, ये मेरा दिल है पेशगी रखिये’’ शायर के दिल से निकली गजलों का नायाब संग्रह
21
लाख कहता हूँ कि धोख़े खाएगा
लाख कहता हूँ कि धोख़े खाएगा
दिल ये कहता है कि देखा जाएगा
रोक लो महबूब को जाने न दो
दूर जायेगा, खुदा हो जाएगा
है ख़िज़ाँ को किसलिए इतना ग़ुरूर
शाख़ पर पत्ता नया आ जाएगा
तीरगी में तुम न साया ढूंढना
सब मुहब्बत का भरम खुल जाएगा
पहले रोने का शऊर आ जाए तो
मुस्कुराने का सलीक़ा आएगा
आंधियों में क्या है तिनके का वजूद
सोचते थे आशियाँ बन जाएगा
आईना बन जाऊँ लेकिन ख़ौफ़ है
मुझसे वो नाहक़ ख़फ़ा हो जाएगा
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पुस्तक का नाम
रौशनी महकती है
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