नई पुस्तकें >> प्रतिभार्चन - आरक्षण बावनी प्रतिभार्चन - आरक्षण बावनीसारंग त्रिपाठी
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५२ छन्दों में आरक्षण की व्यर्थता और अनावश्यकता….
संकल्प
जिस तरह रहना पड़े रह लेंगे हम,
फूल-काँटे जो मिलें सहलेंगे हम।
बात यदि कोई हलक तक आ गई,
लाख ताले हों पड़े कह लेंगे हम।
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