नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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दिन यूँ ही बीत गया
दिन यूँ ही बीत गया
अँजुरी में भरा भरा जल
जैसे रीत गया।
सुबह हुई तो प्राची ने डाले डोरे
साँझ हुई
पता चला
थे वादे कोरे।
गोधूली लौटते पखेरू संगीत गया।
रौशन, बुझती बुझती
शक्लों से ऊबा
एक चाय का प्याला
एक सूर्य डूबा।
शाम को अँधेरा, फिर एक बार जीत गया।
आज का अपेक्षित सब
फिर कल पर टाला
उदासियाँ मकड़ी सी
तान रहीं जाला।
तज कर नेपथ्य कहाँ बाउल का गीत गया।
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