नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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कभी कभी
कभी कभी
बहुत भला लगता है।
चुप चुप सब कुछ सुनना
और कुछ न बोलना।
कमरे की छत को
इकटक पड़े निहारना
यादों पर जमी धूल को
महज़ बुहारना।
कभी कभी
बहुत भला लगता है
केवल सपने बुनना
और कुछ न बोलना।
दीवारों के
उखड़े प्लास्टर को घूरना
पहर-पहर
सँवराती धूप को बिसूरना
कभी कभी
बहुत भला लगता है हरे बाँस का घुनना
और कुछ न बोलना।
कागज पर
बेमतलब की सतरें खींचना
बिना मूल नभ छूती
अमरबेल सींचना
कभी कभी
बहुत भला लगता है
केवल कलियाँ चुनना
और कुछ न बोलना।
अपने अन्दर के
अँधियारे में हेरना
खोयी कोई
उजली रेखा को टेरना।
कभी कभी
बहुत भला लगता है
गुमसुम सब कुछ गुनना
और कुछ न बोलना।
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