नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
|
0 5 पाठक हैं |
सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
9
एक चाय की चुस्की
एक चाय की चुस्की
एक कहकहा
अपना तो इतना सामान ही रहा।
चुभन और दंशन
पैने यथार्थ के
पग पग पर घेर रहे
प्रेत स्वार्थ के।
भीतर ही भीतर
मैं बहुत ही दहा
किन्तु कभी भूले से कुछ नहीं कहा।
एक अदद गंध
एक टेकगीत की
बतरस भीगी संध्या
बातचीत की।
इन्हीं के भरोसे क्या क्या नहीं सहा
छू ली है एक नहीं सभी इन्तहा।
एक कसम जीने की
ढेर उलझनें
दोनों गर नहीं रहें
बात क्या बने।
देखता रहा सब कुछ सामने ढहा
मगर किसी के कभी चरण नहीं गहा।
0 0 0
|