लोगों की राय

नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की

सुबह रक्त पलास की

उमाकांत मालवीय

प्रकाशक : स्मृति प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1976
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15463
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…


63

चलो घर बुहारें


चलो घर बुहारें
पोर पोर से रिसते जख्मों को
बहलायें, दुलरायें, पुचकारें।

भोर हुए बीते
अनगिनत वर्ष
रोशनियाँ बंदी तहखानों में
कलमें तो स्याहियाँ उलगती हैं
बहस चल रही कहवाखानों में
हरिश्चंद्र तो मसान घाटों में
द्वार खड़े सच को दुतकारें।

फिर अकाल सूखा की चर्चायें
एक स्वर्ण अवसर
फिर आया है
नरभक्षी के मुँह में पानी है
बच्चों का गोश्त
उसे भाया है।
पैने नख, दाँतों पर सान धरें
स्वाद का बखान करें चटखारें।
 
बाढ़ कहीं आयी तो
बिल्ली के
भाग खुले
ज्यों छींके टूट गये
संकट ही में
तो पौ बारा हैं
नोट वोट के बढ़ते दाम नये
स्वप्न, सब्जबाग कोरे वायदे
रस्सी के सांपों की फुफकारें।
 
शव किसी सुहागिन
क्वाँरी का,
चमक उठी आँखें कापालिक की
चाँदी है
औ' पाँचों घी में हैं
काले बाजारों के मालिक की।
नाटकीय उद्बोधन के स्वर में
खम ठोकें आओ हम ललकारें।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai