नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
|
0 5 पाठक हैं |
सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
64
दान को क्यों मान लूँ
दान को क्यों मान लूँ
मैं धर्म का आधार ?
दान अपने में
तामस दर्प की मीनार।
दान दाता के अहं का
विषैला विस्फोट
कर्ण, बलि के अहं ने ली
सदा इसकी ओट
दान जिसकी देहरी पर
दीन याचक विनत सिर धर
मौन अपने दलित 'स्व' की
सुन रहा चीत्कार
दान भावों के स्तर पर
भेद की दीवार
परस्पर समबोध
सम्यक दृष्टि अस्वीकार
मूलतः वैषम्य ही
इस दान का आधार।
दया को कैसे कहूँ मैं
धर्म का आधार
दया मधुरस में भिगोयी
गरल की फूत्कार
कृपाकांक्षी एक
दूजा अनुग्रह आगार
दया, जिसकी देहरी पर
हीन निज दयनीय सिर धर
मौन अपने विवश 'स्व' की
सुन रहा चीत्कार
परस्पर समबोध
सम्यक दृष्टि अस्वीकार
मूलतः वैषम्य ही इस दया का आधार
मात्र करुणा
औ' सहअनुभूति ही आधार
इन्हीं दोनों पर टिकी है
धर्म की मीनार
दान और दया नहीं हैं धर्म के आधार
दान और दया कच्ची काँच की मीनार।
0 0 0
|