नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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फैली हुई हथेलियाँ
फैली हुई हथेलियाँ
जिन्हें नसीब न हल्दी उबटन,
हाथों की अठखेलियाँ।
टाफी और खिलौनों वाली
एक गदोरी गोरी
उसे थमा दी अलमुनियम की
पिचकी हुई कटोरी,
भिखमंगन वन डोलें
शहज़ादों की परी सहेलियाँ।
कलम किताब
कापियों वाली
एक हथेली कोरी
उसे विरासत में हमने दी
चोरी रिश्वतखोरी।
फैली हुई हथेली वाली
हमने रची पहेलियाँ।
जब जब युवा हथेली हमसे
काम धाम कुछ माँगे,
हम ने उसके
दरवाजे पर
कोरे वादे टाँगे,
हथेलियों पर सरसों उगती,
ठट्ठा करें हवेलियां।
हथेलियों पर
हथगोलों की
फसल उगाती पीढ़ी
कैद मुट्ठियों में है
काली आँधी वाली सीढ़ी
खुलने पर
खुलकर खेलेंगी,
बम विप्लव रंगरेलियाँ।
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