नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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एक गंध पालतू
एक गंध पालतू,
गमले के फूल की
एक बेपनाह चुभन
झरबेरी शूल की
दोनों ने बारी बारी मुझे बुलाया,
दोनों पर कभी कभी मेरा मन आया।
गया कभी जब मैं
सुविधाओं के द्वारे
संघर्षों ने
कस कस कर ताने मारे
भूल गयी प्रकृति तुम्हें
अपनी बुनियादी
खतरों के, नहीं तुम सुभीतों के आदी।
एक कृपा-दृष्टि
राज्याश्रयी दुकूल की
एक चीख सैलाबों से कटते कूल की
दोनों ने बारी बारी मुझे बुलाया
दोनों पर कभी कभी मेरा मन आया।
ऐशो आराम की तलब,
जब जब घेरे,
विरुदावलि गायन
मन का चारण टेरे।
शोले तज कलियों पर
जब चली जवानी
गैरत ने दिखलाया चुल्लू भर पानी।
एक चाटुकारिता
समय पर कबूल की,
एक किरकिरी
आँखों में चुभती धूल की
दोनों ने बारी बारी मुझे बुलाया
दोनों पर कभी कभी मेरा मन आया।
बोला पद पुरस्कार,
अलंकरण स्वामी,
जैसी कलमें होंगी
वैसीनीलामी,
जब जब बागी भौंहे होती कुछ टेढ़ी,
ललचाती सोने की हथकड़ियाँ बेड़ी
एक दुहाई,
फिसल जाने की भूल की
एक चुनौती तूफानों में मस्तूल की
दोनों ने बारी बारी मुझे बुलाया
दोनों पर कभी कभी मेरा मन आया।
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