नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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नाकाफी लगती है, हर ज़बान
नाकाफी लगती है, हर ज़बान
कोई अक्षर,
कोई शब्द,
किसी भाषा का
पूरा पूरा कैसे व्यक्त करे
क्या कुछ कहता, मन का बियाबान।
एक राह आने की
जाने की
घिसे पिटे पंगु कुछ मुहावरे
दीमक की चाटी कुछ शक्लें हैं
बदहवास कुछ,
कुछ कुछ बावरे
कोई कितना जहर पिये कहो,
नीला पड़ गया टँगा आसमान।
बाबा आदम से
गुम हुए सभी
तोड़ते ज़मीन
कुछ तलाशते
रूढ़ हो गयी सारी मुद्रायें
अर्थ, जरा जर्जर से खाँसते
कितना यांत्रिक
आदत सा लगता
डूब रहा सूरज या हो विहान।
चाहे जितना कह लो
फिर भी तो
रह जाता है कितना अनकहा,
कितनी औपचारिक हैं सिसकियाँ
कितना रस्मी लगता कहकहा।
अभुआता घर घर भुतहा भविष्य
और अप्रस्तुत
लगता वर्तमान।
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