नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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कुष्ठ गलित रातों की देन
कुष्ठ गलित रातों की देन
टीसता मवाद और पीव
फाहों से पोछ रही धूप
सुबह काँध पर लिये सलीब।
तट पर
बेखबर खड़ा पीपल
नीचे से कट रहा कगार
ऐसे कब तक जीये भाई
औरों से साँस ले उधार
शापों की मारी विकलांग
परम्परायें बेबस क्लीव।
टीसते ठहाकों के नाटक
और चोट खायी मुस्कान
दुखते कहकहों की विरासत
ओठों पर पहनी पहचान।
अनावृत्त हकीकतें उदास
उधर गये अभिनय निर्जीव।
हाथ पाँव में रिसता लोहू
मस्तक पर ठुकी हुई कील
मंडराती है बोटी लेकर
आसमान पर उड़ती चील।
सिर पर है
काँटों का ताज
सूली गोली विष पर नींव।।
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