नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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दूध का जला
दूध का जला
छाछ फूँक कर पिये।
इस तरह जिये
भला है नहीं जिये।
दुविधा शंकाओं की
मारी भयभीत
परहेजों में सारी
उम्र गयी बीत।
झण्डे लेकर बराबर चला किये
हर जुलूस के संग संग हो लिये।
गिरवी रखकर विवेक
फ़तवों के नाम
नारों के कीर्तन पर
सुबह और शाम।
मन को अनसुना कर
ओंठ को सिये
समझौते की मुहर जबान पर दिये।
बड़े जिधर गये
एक वही बची राह
सोचना लकीर के सिवा बड़ा गुनाह।
बगावत नहीं फकत चंद मर्सिये
वजूद हैं महज़ ताबूत ताजिये।
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