नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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बरखा की बढ़ी हुई नदिया सी रात
बरखा की बढ़ी हुई नदिया सी रात
दिन काटे ना कटे पहाड़ से।
बन्द एक एक झरोखा
द्वार द्वार चढ़ी साँकलें
उघर गयीं
लाज हाट में
कम से कम यही ढाँक लें
स्यारों की हुआ हुआ की जुड़ी जमात
नगर डगर सब लगें उजाड़ से।
दर्शन सब पंगु हो गये
और अपाहिज परम्परा
मुँह ढंक कर अहं सो गये
बालू में खो गयी त्वरा।
नीलामी बोली की इधर उधर बात
चली है दधीचि बज्र हाड़ से।
दाँत पीस
ओठ काटते
मेज़ों पर मुक्के पटकें
गोठिल गुस्सों के स्वामी
घायल फणिधर
फण झटके।
बौने अस्तित्वों की थोथी सौगात
अरझी झरबेरी के झाड़ से।
संघों से
सेंध लगाकर
भीतर आ गयी रोशनी
भुतहे घर में आ पैठी
एक किरण प्रेत मोचनी !
खुशनुमा हवाओं की थपकियाँ बलात्
टकराकर लौटती किवाड़ से।
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