नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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सुबह रक्त पलाश की
सुबह रक्त पलाश की
तुमको निवेदित
ओ प्रतीक्षित्।
यह प्रभञ्जन चक्रवाती धूल के
शूल हैं यह बेर और बबूल के
इन सबों की घात
इनका स्वाद
सब कुछ है परीक्षित।
यह थकन, यह चुभन
इनका सिलसिला
इन्हें भोगो, मत उठो तुम तिलमिला
सहोगे,
पर कहोगे कुछ भी नहीं,
तुमसे अपेक्षित।
आइना देखें भला साहस नहीं
माथ पर अन्तर
न लिक्खा हो कहीं
यह विपर्यय तुम्हें प्रस्तुत
विदित अविदित औ समीक्षित।
यह मुखौटे नये टोने टोटके
मात शह शतरंज की हर गोट के
इन्हें झेलो
सहेजो संवेदना क्षण
ओ अदीक्षित।
खड़े हैं, पर महज़ बैसाखी लिये
जिये, अपने लिये ही केवल जिये
इन्हें स्वीकारो, समर्पित यह प्रवंचित
औ उपेक्षित !
यह मुलम्में
दर बदर उखड़े हुए
कॉस्मेटिक शक्ल पर चुपड़े हुए
दर्द यह ओढ़े हुए व्यक्तित्व का लो
ओ बुभुक्षित !
अनास्था, विद्रोह, कुण्ठा औ' तृषा
कुल मिलाकर एक भूख जिजीविषा
विरासत याचित अयाचित
तुम्हें अर्पित
ओ अभीप्सित् !
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