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सुबह रक्त पलास की

उमाकांत मालवीय

प्रकाशक : स्मृति प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1976
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15463
आईएसबीएन :0

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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…


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गुजर गया


गुजर गया
एक और दिन
रोज़ की तरह
 
चुगली औ' कोरी तारीफ
बस यही किया
जोड़ें हैं काफिये रदीफ
कुछ नहीं किया
तौबा कर
आज फिर हुई
झूठ से सुलह

याद रहा महज़
नून तेल
और कुछ नहीं
अफसर के सामने दलेल
नित्य क्रम यही
कोल्हू की परिधि फाइलें
मेज़ की सतह।

रह गया न कोई अहसास
क्या बुरा भला
छांछ पर कोई विश्वास
दूध का जला
शब्द बचे अर्थ खो गये
ज्यों मिलन विरह

ठकुर सुहाती
जुड़ी जमात
यहाँ यह मज़ा
मुँह देखी यदि न करो बात
तो मिले सजा।
सिर्फ बधिर, अंधे, गूगों के लिये जगह
 
माना,
सुन्दर बहुत गुलाब
शूल ने डसा
हर सूरत करूँ बेनकाब
यही लालसा।
निष्क्रिय है मौत से अधिक
जिंदगी दुसह।

डरा नहीं आये तूफान,
उमस क्या करूँ ?
बंधक हैं अहं स्वाभिमान
घुटूँ औ' मरूँ।
चर्चायें नित अभाव की शाम औ' सुबह
 
केवल पुंसत्वहीन क्रोध और बेबसी
अपनी सीमाओं का बोध खोखली हँसी।
झिड़क दिया बेवा माँ को उफ ! बिला वजह।

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