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सुबह रक्त पलास की

उमाकांत मालवीय

प्रकाशक : स्मृति प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1976
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15463
आईएसबीएन :0

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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…


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मोती चुगने वाले


मोती चुगने वाले
हंस ना सही
अंगारे चुगने वाले चकोर तो मिले।
 
माना यह
मानसरोवर नहीं रहा
हंसों ने लंघन का दर्द भी सहा
राख तले दब गये
अँगार बहुत हैं
सागर में संभावित
ज्वार बहुत हैं।
पंचम गायक कोयल मिले ना सही
विषधर खाने वाले क्षुब्ध मोर तो मिलें।
 

यह अरण्य रोदन का
सिलसिला थमे
अंगद जैसा कोई
पाँव तो जमे
टूटे नखरद केहरि तरुणाई है
ऐसे में स्यारों की बन आयी है।
चंदन वन भी चाहे
मिले ना सही
दावानल चक्रवात की
झकोर तो मिले।

सिंहों ने
सरकस में
काम कर लिया
बाघिन को श्वान ने
बलात् हर लिया
गिद्धों में लाशों का बँटवारा है
बहरों से उद्बोधन स्वर हारा है
सीपी गज चातक को स्वाति ना सही
तोड़ती कगार बाढ़ की हिलोर तो मिले।
 
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