नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
|
0 5 पाठक हैं |
सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
46
एक आग आदिम
एक आग आदिम
रेगिस्तानों में जो सुलगती रही सदा।
शाद्धल में आकर है मद्धिम।
बाज, जब कपोत को
दबोच ले
और शिवि,
समर्पण की सोच ले
ऐसे में भी
क्यों नहीं तिरी
आँखों में ज्वलित डोर रक्तिम।
सिंह कहीं
चरता दूर्वा दिखे
बागी समझौतों के
खत लिखे
लोहू में
ज्वार नहीं उफने
फिर भी भौंहे न हुई बंकिम।
सूखा जब डस ले सैलाब को
क्रान्ति शरण बनाये किताब को
फिर भी लावा न बहे नस में
ज्वालामुखि पर जमा रहे हिम।
0 0 0
|