नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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छलनी हुई जेब का मालिक
छलनी हुई जेब का मालिक
कौड़ी को मुहताज
देख रहा है रफ्ता रफ़्ता
रिसता हुआ स्वराज।
नाहक कोसे अँधियारों को
लगा रहे हैं दाम।
रोशनियाँ तैयार खड़ी हैं
होने को नीलाम।
हर जुगनू के माथ धरा है काटों वाला ताज।
इन्द्रधनुष पंसारी के घर
चलती खूब दुकान
पंचम की पुड़िया में बँधता
कोयल का ईमान
छूट गया भारत माता से रिश्ता दूर दराज़।
निराधार हो गये मूल्य सब
जैसे हो अफ़वाह
रोज़ मंच से बूँकी जाती
बासी नेक सलाह।
देशभक्ति औ' रकम चीरना एक पंथ दो काज।
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