नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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ब्याज की ऊँची दरों पर
ब्याज की ऊँची दरों पर
इंच भर मुसकान
गर्ज की हर किश्त पर देना पड़ा ईमान।
भले हैं,
जो बैठ पायें हैं दिवाले मार
रह गयी है हाय !
सारी उम्र एक उधार।
रहन में रख पंख हंसा छोड़ मुक्त उड़ान।
कुर्क है गैरत यहाँ
हर मूल्य है नीलाम
हर सुबह है ऋण
कि जिस में धन बनी है शाम।
मूलधन रह जायेगा ही सूद में दो प्राण।
एक ही है
आप्त वाक्य
उधार चरितानाम्
'ऋणं कृत्वा........"
'कर्ज की मय........"
जाप आठो याम।
राम जाने कब बढ़ेगी कर्ज की दूकान।
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