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सुबह रक्त पलास की

उमाकांत मालवीय

प्रकाशक : स्मृति प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1976
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15463
आईएसबीएन :0

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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…


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उपदेशों ने


उपदेशों ने
अर्थ सोख लिये शब्दों के
अक्षर अक्षर निचुड़ गये।

एक चिलम चोर
अर्थ साधु और नेता
देश भक्ति के माने मूर्खता
राष्ट्र पिता कहकर
गाली जिसको दी गयी
वह भारत माता का पूत था
आचरणों के मारे
शब्दों के भाग्य में
कैसे कैसे अनर्थ जुड़ गये।
 
उजले सन्दर्भों के
अर्थ कुष्ट रह गये
बर्बरता के माने क्रान्ति है
बारूदों के ऊपर बैठकर
किये गये
समझौतों को कहते शान्ति है।
व्यापक सन्दर्भों वाले
मानव मूल्य सब
सत्ता के हाथ में सिकुड़ गये।

थोड़े से लोगों की
जायदाद देश है
थोड़े से लोगों का
राष्ट्र है
भारत के माने है
केवल कौरव सभा
बहुमत का मतलब
धृतराष्ट्र है।
बलिपथ के राहगीर
चुपके से हाय रे !
पेंशन की गलियों में मुड़ गये।

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