नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
|
0 5 पाठक हैं |
सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
39
इन अँधेरे जंगलों में
इन अँधेरे जंगलों में
आग का लगना जरूरी
अन्यथा भूमिका मेरी
छूट जायेगी अधूरी
नजरबन्द पड़ी यहाँ पर
भोर की बागी किरन है
नींद की गोली डकारे
ऊँघता हर जागरण है।
मरुथलों में खो गयी है पीढ़ियाँ पीढ़ियाँ पूरी।
दर्प के काँटे उगाये
खड़े बेर बबूल सारे
मूर्छिता संवेदनायें
अहं के सौ लौह द्वारे
सेमली संकल्प चटखे उड़ गये निश्चय कपूरी।
दाँत नख औ' दुम उगाये
आदमी का काफिला है
हिंस्र पशु हर ओर मिलते
पर नहीं आदम मिला है।
ओंठ पर है राम सबके पर बगल में छिपी छूरी।
0 0 0
|