नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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कुहरों पर लिखे हुए
कुहरों पर लिखे हुए
कुछ दस्तावेज
लकवा मारे मन के शंकित परहेज़
यही उत्तराधिकार मिला
यही देगें।
आसमान देखा है
चीरा है पानी
ऐसे ही काटी है
सारी जिंदगानी।
सूर्योदय से हमको रहा है गुरेज़
अंधियारे की फसल रहे सदा सहेज
यही उत्तराधिकार मिला
यही देगें।
कोरी लफ्फाजी
कुछ बेमानी नारे
झेल रहे असन्तोष
इन्हीं के सहारे।
अस्ताचल सी शक्लें सूनी निस्तेज।
जैसे दीमक चाटी पुस्तक के पेज।
यही उत्तराधिकार मिला,
यही देंगे।
दवा ज़़हर
मिली भगत
क्या गोरख़धंधा।
हर आने वाला कल
गिरवी है अंधा।
कागज़ के मन्सूबों से गाभिन मेज
धब्बों को ढँकते है माहिर रंगरेज।
यही उत्तराधिकार मिला
यही देंगे।
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