नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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अँधियारे में जुगनू बोये थे कल
अँधियारे में जुगनू बोये थे कल
सूरज की आज फ़सल काटने चले।
राई से सिरजते पहाड़
तो सुना
बातों में तिल होते ताड़ तो सुना
मुट्ठी भर कंकड़ ही
बोये थे कल
हीरों के इश्तहार छापते भले।
कुहरा बन बहुतेरा
रोका तो था
बढ़ते सैलाबों को टोका तो था
घड़ियाली आँसू तो बोये थे कल
कैसे थे पुण्य अट्टहास में फले।
जैसी करनी
वैसी भरनी क्या है
साँस टूटने पर बैतरणी क्या है।
नागफनी औ' बबूल बोये थे कल
सो रहे टिकोरों की छाँव के तले।
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