नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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चलो कहीं और चलें
चलो कहीं और चलें
छोड़ दें शहर
रहने लायक नहीं रहे महानगर।
निगल गये पनघट को
सड़कों के नल
बेबस बेपर्द देह, दृष्टि उठी जल।
आँगन दालानों को
तरस गये घर
खोली दरखोली से घर गये उघर।
भीड़ भाड़ भाग दौड़
सूत्र खो गये
माँ बेटे पति पत्नी
यन्त्र हो गये।
कैसे दिन निकला,
कैसे गया गुजर
क्या जाने हमको इसकी कहाँ खबर।
नियति हमारी
कोल्हू की परिक्रमा
भले और कोई
जय करे चन्द्रमा।
क्यू में ही खड़े रहे
हम पहर पहर
बीत चली उम्र खत्म हो चला सफर।
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