नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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कहाँ कहाँ
कहाँ कहाँ
किसे दें उलाहने
अंधों के हाथ लगे आइने।
आईनों की कलई खुल गयी
रही सही थी
जो भी धुल गयी।
सभी लगे हैं बगली झाँकने।
हम दादुर
प्रभु जी ! तुम हो कुँआ
नियति हमारी महज हुआ हुआ।
रँगे स्यार कर लगे उगाहने।
चौराहों पर जुलूस हाँफते
मृगछाले कुर्सियाँ तलाशते।
श्वानों पर रीझ गयीं बाघिने।
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