नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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ना तो सतर का हूँ
ना तो सतर का हूँ
ना ही कतारों का
जो सर उठाये हैं
उन देवदारों का।
अपने अहं का हूँ,
अपनी इकाई का
जो आर्त टेरे है
उसकी दुहाई का
ना भीड़ लहरों की
नाही कगारों का
जो प्यार से भेंटे उन यादगारों का।
ना लीक का हामी
ना हूँ शिविर स्वामी
ना हाट का हूँ मैं
ना बोल नीलामी
ना दर्प का दंशन
थोथे विचारों का
जो राह पर मिलतीं उन जीत हारों का।
विग्रह अमन सारे
यह पालतू नारे
उन राजनेता के
हर दांव जो हारे
नेता न अभिनेता
ना मठ निहारों का
मैं हर सिंगारों का, जलते अँगारों का।
ना फूल अचकन का
ना शूल अड़चन का
ना फूल गमलों का
मैं फूल वन बन का।
अपने भरोसे हूँ
ना हूँ सहारों का
आकाश जो छूलें ऐसे चिनारों का।
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