नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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आह !
आह !
पिछली रात का पिछला पहर,
सुगबुगाने लगा है सोया शहर।
अधमुंदी आँखें,
बदलती करवटें।
एक जगहर की
फिसलती आहटें।
अजब मीना धुंध
अलस खुमार का
डस गयीं सौ सांपिने लेती लहर |
नींद की,
छिपने लगी परछाइयाँ
अंग अंग मरोड़ती अंगड़ाइयाँ
लड़खड़ाते हुए कदमों से अभी
छू गयी खैयाम की कोई बहर।
चिमनियों ने,
पेट को आवाज दी
भीड़ की
कुल शक्ल
बेवस गावदी
बेबसी हर आँख में लिक्खी हुई
रेंगती चल पड़ी सड़कों पर नहर।
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