नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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शिराओं में लहरती
शिराओं में लहरती
सैलाब की मारी नदी।
शुतुरमुर्ग बना रहा मैं
रेत में सिर डालकर
बहुत खुश था,
बच रहूँगा
आँधियों को टालकर
बहानो के रूप धर
टिकी है बैसाखियों पर
मौत की विकलांग मकड़ी
षटपदी।
सिर छिपाकर पीठ में
मैं स्वयं कछुआ बन गया।
पीठ के पाषाण नीचे,
दब गया सब कुछ नया
पलायन में निरन्तर,
कर रहे पीछा कई स्वर
टेरते हैं
क्रास सूली सरमदी।
ताल के
फूले कमल वन
और मैं लोभी भ्रमर,
चाहता, ले लूँ बसेरा,
एक क्षण गुंजार कर
किन्तु,
इस ठहराव में
गतिरोध जन्य पड़ाव में
चीर मुझको गयी है
मेरी सदी।
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