नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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कंधों पर सैकड़ों
कंधों पर सैकड़ों,
सलीब लिये प्रश्न के
सूर्योदय होते हैं हारे हारे थके।
रात तो अतीत हुई
मगर नहीं बीतती
भोर के उजाले पर
स्याहियाँ उलीचती
कण्ठ में रुंधे कलरव ओंठ तक न आ सके
रह रह कर टीस टीस
जाते फोड़े पके।
सोख गयीं स्वाति मेघ कुछ कृतघ्न सीपियाँ,
बाँझिन हो गयी किस नियोजन से क्रान्तियाँ,
कुहरों की शिकने हैं मस्तक पर घाम के,
उत्तर की तलबगार द्वारों पर दस्तकें।
चुभन की चुनौती का
एक ही जवाब है
कांटों के माथ मौर
सोहता गुलाव है।
चौराहों पर सपने बिके रामराज के,
छिलके छिलके जैसे उतर गये प्याज के।
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