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सुबह रक्त पलास की

उमाकांत मालवीय

प्रकाशक : स्मृति प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1976
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15463
आईएसबीएन :0

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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…


17

प्रतिश्रुत हूँ जीने को

 
प्रतिश्रुत हूँ जीने को,
कुछ थोड़े आँसू को,
ढेर से पसीने को।
 
मीरा, सुकरात,
और शम्भु की विरासत,
सादर सिर आँखों पर,
लेने की आदत।
अमृत मिले या न मिले,
मगर जहर पीने को।

पत्थर पर घनप्रहार,
बड़ी अजब सूरत,
आघातों से,
उभरी आती है मूरत,
चोट खा निखरने के,
सहज कटु करीने को।

झेलँगा धूल भरे,
जून के बवण्डर,
सह लूँगा आये जो,
ठिठुरता दिसम्बर,
कैसे भूलूँ सावन,
फाग के महीने को।
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