नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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प्रतिश्रुत हूँ जीने को
प्रतिश्रुत हूँ जीने को,
कुछ थोड़े आँसू को,
ढेर से पसीने को।
मीरा, सुकरात,
और शम्भु की विरासत,
सादर सिर आँखों पर,
लेने की आदत।
अमृत मिले या न मिले,
मगर जहर पीने को।
पत्थर पर घनप्रहार,
बड़ी अजब सूरत,
आघातों से,
उभरी आती है मूरत,
चोट खा निखरने के,
सहज कटु करीने को।
झेलँगा धूल भरे,
जून के बवण्डर,
सह लूँगा आये जो,
ठिठुरता दिसम्बर,
कैसे भूलूँ सावन,
फाग के महीने को।
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