नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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सुनते हो
सुनते हो।
अंखुओं को मार गया पाला।
विनतियों चिरौरी में
उम्र ही गवाँई,
रही कब नसीब हमें,
फसलकीकटाई।
कहाँ मयस्सर हमें चैन का निवाला।
नहीं कुछ अजूबा
यदि घटे उलटवासी
आयी थी कबिरा को
इस कारण हांसी।
सरे आम सच्चों का होता मुँह काला,
झूठों का दुनिया में बड़ा बोल बाला।
राग भरी युवा रैन
खेत में सिराई
आँसू ने काजल की
मेट दी कमाई।
ढिबरी को अंक भरे ऊँघ रहा आला।
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