नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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झण्डे रह जायेंगे आदमी नहीं
झण्डे रह जायेंगे आदमी नहीं
इसलिये हमें सहेज लो ममी सही
जीवित का तिरस्कार
पुजें मकबरे
रस्म यह तुम्हारी है,
कौन क्या करे
ताजमहल, पितृपक्ष श्राद्ध सिलसिले,
रीति यह अभी नहीं कभी थमी नहीं।
शायद कल मानव की
हो न सूरतें
शायद रह जायेंगी
हमी मूरतें।
आदम की शकलों की यादगार हम,
इसलिये हमें सहेज लो डमी सही।
पिरामिड अजायबघर
शान हैं हमीं
खूब देख भाल लो
नहीं जरा कमी।
प्रतिनिधि हम
गत आगत दोनो के हैं
पथरायी आखों में है नमी कहीं।
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