नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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मैं तुम्हारे चरण चिन्हों पर चलूँ ?
मैं तुम्हारे चरण चिन्हों पर चलूँ ?
मैं तुम्हारे दिये साँचे पर ढलूँ ?
ऐसा दुराग्रह क्यों ?
ऐसी दुराशा क्यों?
अनुकरण अनुसरण से यदि दूर हूँ,
यह न भ्रम हो दर्प-मद से चूर हूँ।
भीख में पाये उजाला सूर्य से
मैं निकम्मे चन्द्रमा सा ही जलूँ
और कल की जूठनों पर ही पलूँ,
ऐसा दुराग्रह क्यों ?
ऐसी दुराशा क्यों ?
भूमिका कल की बड़ी थी मानता,
आज का जो दाय वह भी जानता, दूँ
दुहाई सदा स्वर्ण अतीत की,
मूंग छाती पर दिवंगत की दलूँ
आज का दायित्व कंधों पर न लूँ।
ऐसा दुराग्रह क्यों ?
ऐसी दुराशा क्यों ?
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