नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
|
0 5 पाठक हैं |
सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह
सिकन्दर का पश्चाताप
भारत विजय करने के उपरान्त जब सिकन्दर वापस जाने लगा तो सहसा उसे स्मरण हो आया कि उसके गुरुदेव अरस्तू ने उससे भारत के एक महान दार्शनिक को अपने साथ लाने के लिए कहा था। सिकन्दर ने अपने प्रमुख सेनापति से कहा कि किसी दार्शनिक को ढूँढ़ कर साथ ले चलना होगा, तभी हम यहाँ से वापस जा सकेंगे।
सेनापति दार्शनिक कालीनूस के पास गया और बोला, "आपको सिकन्दर महान् ने याद किया है।"
"क्यों?"
"वे आपके दर्शन करना चाहते हैं।"
"दर्शन करने हों तो वह स्वयं यहाँ आकर दर्शन करें, मैं क्योंजाऊँ?"
सिकन्दर को जाना पड़ा। कालीनूस के पास जाकर उसने दार्शनिक को प्रणाम किया और फिर अपना अभिप्राय भी प्रकट कर दिया। कालीनूस उसके साथ चल पड़े।
बेबीलोन में विश्राम करने के लिए सेना ने डेरा डाला। कालीनूस ने कहा, "सिकन्दर को बुलाओ।"
रात्रि का समय था। सिकन्दर आ गया और उसने कहा, "मैं उपस्थित हूँ श्रीमन्।"
कालीनूस बोले, "सिकन्दर! मेरे लिए फौरन चिता तैयार कराओ।"सिकन्दर आश्चर्यचकित था। फिर भी आदेश का पालन किया गया।
कालीनूस बोले, "सिकन्दर! इस देश में निवास करते हुए हमें सौ वर्ष हो गये हैं। मैं अब इस पुराने शरीर को त्याग देना चाहता हूँ।"
यह कह कर कालीनूस उस चिता पर इस प्रकार बैठ गये मानो समाधिस्थ हो गये हों। कालीनूस चिता पर बैठेऔर कुछ क्षणों के बाद उनकी आत्मा देह से प्रयाण कर गयी। चिता में आग लगाई गयी और देह जल कर भस्म हो गयी। सिकन्दर कहने लगा, "ऐसे महान् पुरुषों के महान् देश पर आक्रमण करके मैंने महान् पाप किया है। सिकन्दर पश्चाताप करने लगा और रात अधिक हो जाने पर सो गया। लोगों ने अगली सुबह जब देखा तो सिकन्दर इस लोक से प्रयाण कर चुका था। उसने लिख कर रखा था, "गुरुदेव से कहना, स्वयं भारत जाकर किसी सच्चे ऋषि से वहाँ सच्चा ज्ञान प्राप्त करें।"
¤ ¤
|