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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

न्याय

नौशेरवाँ बड़ा न्यायकारी माना जाता था। अपने न्याय के लिए वह जगप्रसिद्ध था। उसने अपने प्रासाद पर एक जंजीर लटका रखी थी, और प्रजा में घोषणा करवा रखी थी कि जिस किसी को भी न्याय न मिल रहा हो, वह इस स्थान पर किसी भी समय आकर इस जंजीर को खींचे और अपना निवेदन प्रस्तुत करे।

इस घोषणा को कुछ ही दिन बाद एक दिन एक वृद्धा का एकमात्र पुत्र नौशेरवाँ के पुत्र की गाड़ी के नीचे कुचल गया और उसने प्राण चले गये। वृद्धा ने न्याय की गुहार लगाई और नौशेरवाँ के प्रासाद पर जाकरजंजीर खींच दी। नौशेरवाँ खिड़की परआया तो वृद्धा ने आपबीती सुना कर न्याय की प्रार्थना की।

नौशेरवाँ ने उससे सारा हाल सुना और उसे न्याय का आश्वासन देकर विदा किया। उसके बाद नौशेरवाँ ने घटना की छानबीन करवाई तो वृद्धा के कथन की पुष्टि हो गयी। उसने अपने पुत्र को प्राण-दण्ड की घोषणा कर दी।

राजा की घोषणा सुन कर राजप्रासाद ही नहीं, सारे नगर में खलबली मच गयी। राज-परिवार और नगर-भर में शोक की लहर छा गयी।

निश्चित दिन, निश्चित समय पर राजकुमार को वध-स्थल पर लाया गया।वध-स्थल पर राजपरिवार के अलावा नगर के गण्यमान्य लोगों की भीड़ भी एकत्रितहो गयी थी। यथासमय नौशेरवाँ वहाँ उपस्थित हुआ। जल्लादों को राजपुत्र को फाँसी पर चढ़ाने की आज्ञा दी गयी।

राजकुमार को फाँसी के तख्ते पर ले जाया गया और उसके सिर पर काला कपड़ा डाल कर फाँसी का फंदा भी डाल दिया गया, अब केवल खींचने की आज्ञा होने वाली ही थी कि तभी वह वृद्धा, जिसका पुत्र राजकुमार की गाड़ी के नीचे आकरमर गया था, चिल्लाती हुई वधस्थल पर उपस्थित हुई। लोगों ने सोचा, अब पता नहींक्या शिकायत लेकर आयी होगी।

उसने बिना विलम्ब किये कहा, "बादशाह ! राजकुमार को फाँसी से उतरवा दो।"

लोग सुन कर आश्चर्य करने लगे। किन्तु नौशेरवाँ विचलित नहीं हुआ। उसने प्राणदण्ड में विलम्ब के लिए अधिकारियों को लताड़ा और उसने फिर कहा, "राजकुमार को प्राण-दण्ड दिया जाय।"

वृद्धा ने कहा, "नहीं बादशाह! ऐसा नहीं होसकता।"

"क्यों?" नौशेरवाँ ने उससे पूछा।

वह बोली इसलिए कि आपने मेरे पुत्र के प्राण लेने के बदले इसे यह दण्ड दिया है। यह तो बदला लेना हो गया। मैं बदला लेने के लिए नहीं आयी हूँ। और जब मैं बदला ही नहीं लेना चाहती हूँ तो आप राज-पुत्र के प्राण किस प्रकार ले सकते हैं?"

वृद्धा का उत्तर सुन कर नौशेरवाँ अवाक रह गया। वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया था। बादशाह के नेत्रों से आँसुओं की झड़ी निकलने लगी। उस अनुपम दृश्य को देखकर उपस्थित जन-समुदाय भी अवाक रह गया।  

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