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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

सार्थक ज्ञान

प्राचीनकाल की घटना है कि एक बार एक राजा किसी पण्डित पर गुस्सा हो गया और अपने कर्मचारियों को आदेश देते हुए कहा, "इस व्यक्ति की सारी सम्पत्ति नीलाम करवा दी जाय और उससे जो आय हो उसे राज-कोष में जमा कर दिया जाय।"

राजा के क्रोध का शिकार बना वह पण्डित राजाकी आज्ञा के विषय में जानकर बड़ा दुःखी हुआ। उसने नगर में घोषणा के विषय में सुना तो दुःखी मन से किसी तरह घर आ गया और अपनी पत्नी से बोला, "प्रिये! कल राजा हमारी सारी सम्पत्ति नीलाम करवा देगा। राजा के इस आदेश के विषय में मैं अभीअभी बाजार में सुन कर आ रहा हूँ। अब हम क्या करेंगे?"

पत्नी बोली, "इसमें घबराने की क्या बात है?"

"यह तुम क्या कह रही हो, यह घबराने की नहीं तो क्या प्रसन्न होने की बात है? हमारी सम्पत्ति नीलाम हो जाएगी तो हम क्या करेंगे?"

पण्डिताइन हालाँकि पण्डित जी की भाँति पोथी-पत्रा कुछ नहीं जानती थी और न उसको साधारण पुस्तकों का ज्ञान ही था। किन्तु वह धैर्यवती और विवेकशील थी। उसने पति से पूछा, "क्या राजा कल आपको भी नीलाम कर देगा?"

"क्या मूर्खता-भरी बातें करती हो? राजा हमारी सम्पत्ति नीलाम करवाएगा, हमें क्यों नीलाम करेगा? हम क्या सम्पत्ति हैं?"

"मुझे और बच्चों को भी नीलाम नहीं करवाएगा न?"पत्नी ने पूछा। "नहीं, यह सब नहीं होगा।"

"और हमारे जो अनुभव हैं, ज्ञान है, हममें जो सद्गुण हैं और पुरुषार्थ करने की भावना है, उनको तो नीलाम नहीं करवाएगा न?"

"नीलामी तो बाद की बात है वो इनको स्पर्श ही नहीं कर सकता है, ।" पति प्रश्न सुन कर खीझ गया था।

पत्नी बोली, "तो हमें क्या घबराना? जब हमारे सद्गुण, साहस, ज्ञान और पुरुषार्थ आदि सभी अमूल्य रत्न हमारे पास रहेंगे तो यह जड़ सम्पत्ति भले चली जाय, इसका क्या दुख करना।"

पत्नी की बातें सुन पति की आँखें खुल गयीं। पति ने समझ लिया कि मैंने जो ज्ञान प्राप्त किया थावह विवेक के अभाव में वह सार्थक नहीं हो पायाथा। अब वह भी निश्चिन्त हो गये थे।  

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