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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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किसी गाँव में एक किसान रहता था। उसके पास एक गाय और एक घोड़ा था। गाय और घोड़ा दोनों ही जंगल में एक साथ चरने जाया करते थे। किसान के पड़ोस में एक धोबी रहता था। धोबी के पास एक गधा और एक बकरी थी। धोबी भी उन्हें उसी जंगल में चरने को छोड़ देता था, जिसमें गाय और घोड़ा चरा करते थे।

एक साथ चरने से चारों पशुओं में मित्रता हो गयी। प्रातःकाल साथ ही चारों मिल कर जंगल में चरने जाते और शाम होने पर चारों साथ ही अपने-अपने घर वापस आ जाते।

जिस जंगल में ये चरने जाया करते थे उस जंगल में एक खरगोश भी रहता था। खरगोश ने जब चारों पशुओं में परस्पर गहरी मित्रता देखी तो सोचने लगा-मेरी भी इनसे मित्रता हो जाय तो कितना अच्छा हो। इतने बड़े पशुओं से मित्रता होने पर कोई कुत्ता मुझे तंग नहीं कर सकेगा।

यह विचार कर खरगोश उन चारों के इर्द-गिर्द बार-बार चक्कर काटने लगा। उनके सामने उछलता-कूदता और उनके साथ ही चरने लगता था। इस प्रकार कुछ दिन उछल-कूद करने के उपरान्त उन चारों के साथ उसकी भी मित्रता हो गयी। इस मित्रता से खरगोश को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने समझा कि अब कुत्तों का भय दूरहो गया है।

दुर्भाग्य से एक दिन एक कुत्ता उस जंगल में आ धमका और खरगोश को घास चरता देख कर उसके पीछे दौड़ पड़ा। खरगोश भागा-भागा गाय के पास गया और बोला, "गोमाता! यह कुत्ता बड़ा दुष्ट है। यह मुझे मारने आया है। मुझे इससे बचाओ और अपने सींगों से इसे मारो।"

गाय ने कहा, "खरगोश भाई!तुम बहुत देरी से आये हो, अब तो मेरे घर लौटने का समय हो गया है। मेरा बछड़ा दिन-भर का भूखा होगा। वह बार-बार मुझे पुकार रहा होगा। मुझे घर जाने की जल्दी है। तुम घोड़े के पास चले जाओ।"

खरगोश दौड़ता हुआ घोड़े के पास गया और उससे बोला, " घोड़ेभाई! मैं आपका मित्र हूँ। हम दोनों एक साथ ही यहाँ चरते हैं। आज यह दुष्ट कुत्ता मेरे पीछे पड़ा है। तुम मुझे अपनी पीठ पर बैठा कर कहीं दूर ले चलो।"

घोड़े ने कहा, "तुम्हारी बात तो ठीक है, किन्तु मुझे बैठना ही नहींआता। मैं तो खड़े-खड़े ही सोता हूँ। तुम मेरी पीठ पर चढ़ोगे कैसे? फिर आजकल मेरे सुम(खुर) भी बढ़ गये हैं। मैं न तो तेज दौड़ सकता हूँ और न पैर फटकार सकता हूँ।"

घोड़े के पास से निराश होकर खरगोश गधे के पास गया। उसने गधे से कहा, "मित्र गर्दभराज ! तुम यदि इस पाजी कुत्ते पर एक दुलत्ती झाड़ दो तो मेरे प्राण बच जाएँ।"

गधा बोला, "मैं नित्य गाय और घोड़े के साथ घर लौटता हूँ। वे दोनों घर जाने के लिए तैयार खड़े हैं। यदि मैं उनके साथ न जाकर पीछे रह जाऊँगा तो मेरा स्वामी धोबी डंडा लेकर आयेगा और पीटते-पीटते मेरा कचूमर निकाल देगा। इसलिए मैं अब यहाँनहीं ठहर सकता।"

अन्त में बकरी बची थी। खरगोश बकरी के पास गया। बकरी ने उसे सबके पास होकर फिर अपने पास आते देखा तो उसके कुछ कहने से पहले ही बोल पड़ी, "भाई खरगोश! कृपा करके इधर मत आओ। तुम्हारे पीछे कुत्ता दौड़ा आ रहा है। मैं उससे बहुत डरती हूँ।"

खरगोश को चारों से बड़ी निराशा हुई। उसने अपने प्राण बचाने के लिए वहाँ से भागना ही उचित समझा और वह वहाँ से भागा। भागते-भागते वह जाकर एक झाड़ी मेंछिप गया।

कुत्ते ने बहुत ढूँढ़ा, किन्तु उसको खरगोश का पता नहीं चल पाया कि वह कहाँ छिप गया है। जब कुत्ता लौट गया तब खरगोश झाड़ी से निकल कर चला गया।

मुसीबत में दूसरों पर भरोसा करना बेकार है, अपनी सहायता अपने आप करनी चाहिए।  

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