नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह
आपस की कलह
किसी वन में एक शेर और एक चीता साथ-साथ रहते थे। वैसे तो शेर बड़ा बलवान होता है, किन्तु यह शेर अब काफी बूढ़ा हो चला था, अतः उसका बल क्षीण हो गया था। उससे दौड़ा ही नहीं जाता था। छलाँग मारने की बात तो दूर रही। उसका साथी चीता मोटा और बलवान था। इतना होने पर भी चीता उस बूढ़े शेर से डरता था. इसीलिए उससे मित्रता रखता था। क्योंकि बूढ़ा होने पर भी आखिर था तो शेर ही और चीते से अधिक बलवान भी था।
यों जीवन बीत रहा था कि एक अवसर ऐसा भी आया जब दोनों साथियों में से किसी को भी वन में कोई शिकार नहींमिला । दोनों को भूखे मरने की नौबत आ गयी। एक दिन दोनों ने देखा कि एक छोटा-सा हिरन पास में ही चर रहा है।
हिरन असावधान था। चीते ने शेर से कहा, "मैं हिरन का शिकार करता हूँ। किन्तु आप नाले के ऊपर बैठ जाएँ, जिससे हिरन नाले में भाग कर छिप न जाय।"
दोनो ने वैसा ही किया। चीता हिरन का शिकार करने निकला तो शेर नाले पर बैठ गया। हिरन की नजर चीते पर पड़ी और वह दौड़ना ही चाह रहा था कि चीते ने उसको दबोच लिया। हिरन क्या वह हिरन का बच्चा बहुत छोटा था, दो की तो क्या, उससे किसी एक की भी भूख शान्त नहीं हो सकती थी।
उधर शिकार देखकर दोनों के मन में लालच जाग उठा। दोनों ही उसको अकेले हड़पना चाह रहे थे।
चीता बोला, "मैंने हिरन को अकेले ही मारा है, इसलिए मैं इसको खाकर अपनी क्षुधा शान्त करूँगा।"
शेर बोला, "मैं जंगल का राजा हूँ। हिरन मैं खाऊँगा। तुम तो दौड़ सकते हो, दौड़ कर कोई दूसरा शिकार पकड़ लो। यह अकेला नहीं हो सकताआस-पास और भी हिरन अवश्य होंगे। ।"
चीता यह मानने को तैयार नहीं था। दोनों में पहले वाक्युद्ध हुआ फिर हाथापाई होने लगी। दोनों एक-दूसरे को दाँत और पंजों से क्षत-विक्षत करने लगे। एक सियार वहीं कहीं झाड़ी में छिपा था। वह यह सब तमाशा देख रहा था।
जब शेर और चीते ने एक-दूसरे को अपने पंजों और दाँतों से घायल कर दिया तो दोनों ही भूमि पर गिर पड़े। सियार दूर से यह सब देख रहा था। उसको मौका मिल गया। सियार झाड़ी से चुपचाप निकला और हिरन को घसीटकर झाड़ी में ले गया। दोनों को घायल देख कर उसने हिरन पर दाँत गाड़े और गपागप खाने लगा। शेर और चीतादोनो यह सब देख रहे थे, किन्तु वे इतने अधिक घायल हो गये थे कि कोई भी उठ कर उससे हिरन को छीन नहीं सकता था। दोनों देखते औरहाथ मलते रह गये।
दो व्यक्तियों की परस्पर कलह में तीसरा लाभ उठा लेता है। प्रकृति का यह सिद्धान्त भूलना नहीं चाहिए और किसी से लड़ाई नहीं, मेल से रहना चाहिए।
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